Friday 27 May 2016

बड़े हो रहे बच्चों के अभिभावकों के लिए !

भारत जैसे देश में जहाँ आजीवन अभिभावकत्व की सुविधा है यह प्रश्न बहुत मौजूं है कि आखिर किसी भारतीय बच्चे को किस उम्र से आगे की जिम्मेदारियों का अहसास कराया जाये ?... उस किस उम्र से भविष्य के सपनों पर चलने के तरीके सुझाये जाएँ ?....मुझे तो लगता है कि १०-११ साल की उम्र वह उम्र है जहाँ हम बच्चों की मासूमियत पर भार डाले बगैर उसे धीरे -२ भविष्य के सपनों की ओर प्रवृत्त करना शुरू कर सकते हैं .....यह वह समय होता है जब हम उसके सपनों की टोह लेना शुरू कर सकते हैं , उसके सपनों के निर्माण की प्रेरणा देना भी शुरू कर सकते हैं ...... हम इस उम्र से उसे स्वतंत्र अध्ययन के लिए प्रेरित कर सकते हैं ...उसे अच्छी पुस्तकों , अच्छी वेबसाइट्स , अच्छे टीवी कार्यक्रमों के प्रति हमें प्रेरित-निर्देशित करना आरम्भ कर देना चाहिए ...पर इस तरह जैसे वह भी उसके खेलों का हिस्सा हो ...उसके ऊपर ऐसी चीजें भार की तरह न डालें बल्कि उनको यूँ प्रेरित करें कि उनके भीतर परिष्कृत और विविध रुचियों के प्रति सहज आकर्षण पैदा हो जाये .... पढ़ने की आदत समाचार पत्रिकाओं , अख़बारों द्वारा भी लगाई जा सकती है ....भाषा के प्रति सजगता की शुरुआत का भी यही समय है ...यथासंभव बच्चे को द्विभाषी भाषी बनायें ...नार्मन लुइस की  वर्ड पॉवर मेड इजी का अभ्यास १२ साल तक के बच्चों द्वारा आरम्भ किया जा सकता है ...बच्चों को अच्छे खानपान की आदतों , स्वास्थ्य के अनुकूल दिनचर्या के प्रति भी सचेत करते रहने की जरूरत होती है ....हाँ ऐसा करते समय मित्र भाव रहे ...अभिभावकत्व का ठाठ नहीं ...बच्चे को खेलों से सामुदायिकता से भी लगातार जोड़े रहने की जरुरत होती है और उनके लगातार मनो वैज्ञानिक निर्देशन की भी ...बच्चे के साथ मित्रवत व्यवहार ही यह सुनिश्चित करेगा कि वह आपसे चीजें शेयर करता है या नहीं ...इसलिए पुराने ज़माने के तानाशाह युगीन माता-पिता बनने की आदत बदल डालें ...भाषा , सामान्य ज्ञान , गणित , बोलने की क्षमता , रुचियों का विविध विकास ऐसा क्षेत्र है जिसमें बच्चों के भविष्य की सम्भावना छिपी हुई है ....इन संभावनाओं को बचपन से ही समृद्ध करने की जिम्मेदारी आप की है , वह भी इस तरह जिसे बच्चे उसमें खुद तनावरहित और प्रेरित महसूस करें....... .वर्तमान समाज में लगभग सभी माता पिता कुछ न कुछ पढ़े लिखे होते हैं.अतः यदि अपने बच्चे को प्राईमरी शिक्षा में अपना सहयोग स्वयं दे सकें ,और उचित मार्ग दर्शन कर सकें तो अधिक उचित होगा.प्राथमिक शिक्षा में मजबूत नींव वाले बच्चे आगे दौड़ लगा पाते हैं.बच्चे में शिक्षा के प्रति रूचि पैदा करने का सर्वाधिक उचित समय यही होता है.बच्चे को शिक्षा देने का उद्देश्य सिर्फ उसे धनार्जन के लिए तैयार करना ही नहीं होता उसे वर्तमान जीवन शैली में सामान्य व्यव्हार करने और चरित्र निर्माण के लिए भी शिक्षा दिलाना आवश्यक है.आज घर पर ही इतने अधिक उपकरण आ चुके है जिन्हें समुचित रूप से चला पाने के लिए भी शिक्षित होना आवश्यक होता है.
प्राईमरी और जूनियर हाई स्कूल की शिक्षा के पश्चात आपका बच्चा अपने करिअर के मुख्य एवं प्रथम पायदान पर पहुँच जाता है.जब वह हाई स्कूल की परीक्षा में बैठने की तय्यारी करता है .यह सीढ़ी उसके भविष्य को तय करने के लिए महत्वपूर्ण होती है.अतः अभिभावकों को अपने बच्चे को अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त सहयोग देना चाहिए. उसकी आवश्यकतानुसार पुस्तकें एवं ट्यूशन द्वारा यथा संभव मदद करनी चाहिए.बच्चे को भी उसकी प्रथम सीढ़ी का महत्त्व बताया जाना चाहिए,उसे सुनहरे भविष्य बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए.और बताना चाहिए की इसकी सफलता ही उसके आगे के पाठ्यक्रम की दिशा तय करने वाली है.हाई स्कूल तक पहुँचते पहुँचते बच्चा अपनी किशोरावस्था में प्रवेश कर जाता है इस दौरान मानसिक विकास के साथ साथ शारीरिक विकास का भी महत्वपूर्ण दौर होता है .इस अवस्था में वह शारीरिक अंगों की परिपक्वता के साथ योवनावस्था में प्रवेश करने लगता है.यह समय प्रत्येक किशोर के लिए भावना प्रधान होता है,उमंगें हिलोरे लेने लगती हैं,वह इस संसार को शारीरिक आकर्षण का केन्द्र मान कर भ्रमित होने लगता है.समय से पूर्व शारीरिक आकर्षण के कारण अवांछनीय व्यव्हार करना उनके शारीरिक एवं मानसिक विकास में बाधक बन सकता है .अतः अभिभावकों को उसकी भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए उसे प्यार,भावनात्मक सहयोग और उचित मार्ग निर्देशन देना आवश्यक है, यह समय उसके चरित्रिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है.यदि इस समय माता पिता या अभिभावक उससे उपेक्षित व्यव्हार करते हैं तो वह भटकाव के रास्ते पर जा सकता है.क्योंकि ऐसी स्थिति में वह अपनी भावनाओं को मित्रों के साथ बांटता है और वहाँ से अधकचरे ज्ञान एवं असंगत व्यव्हार के चंगुल में आने की सम्भावना बनी रहती है. उसकी प्रत्येक गतिविधी पर नजर रखनी चाहिए. विशेषकर उन्हें कम्यूटर पर कार्य करते हुए भी निगाह रखनी चाहिए.वहाँ से प्राप्त अश्लील सामग्री उसके व्यक्तित्व को नष्ट कर सकती है. दूसरी बात विशेष तौर पर ध्यान देने योग्य है की वह बीडी,सिगरेट,शराब,ड्रग्स जैसे मादक द्रव्यों के प्रभाव में तो नहीं आ रहा है.प्रत्येक अभिभावक को उस पर नियंत्रण करना आवश्यक है,परन्तु नियंत्रण में कठोरता के स्थान पर प्यार,सलाह,अपनापन का अहसास देकर मार्गदर्शन देना चाहिय.उसे अपने भविष्य निर्माण पर ध्यान देने के लिए प्रेरित करना चाहिए.आपके मार्ग निर्देशन में स्पष्टता होनी चाहिए ,आपके कथन में विरोधाभास नहीं होना चाहिए.यदि आपकी कथनी और आपकी करनी आपके व्यव्हार से मेल खाती है तो बच्चे के बेहतर चरित्र निर्माण की राह आसान हो जाती है.
हाई स्कूल की परीक्षा में सफलता के पश्चात इंटर में उसे अपनी रूचि के अनुसार एवं भावी योजना का अनुसार पाठ्यक्रम और उसके विषय चुनने होते है.अभिभावक उसको अपनी भावी रणनीति तय करने अर्थात विषयों का चयन करने में मदद कर सकते हैं,उसको अपना लक्ष्य निर्धारित करने में सहायता कर सकते हैं. यदि आप स्वयं निर्णय न ले पायें तो किसी विशेषज्ञ की राय लेने नहीं हिचकिचाना चाहिए.एक बात की सावधानी भी आवश्यक है की उस पर अपनी मर्जी न थोपी जाय.उसको अंतिम निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए.लक्ष्य के चुनाव में किसी भी प्रकार का दबाव बच्चे का भविष्य खराब कर सकता है.प्रत्येक बच्चे की मानसिक एवं शारीरिक क्षमता भिन्न होती है,अतः यह आवश्यक नहीं की प्रत्येक बच्चा इतना मेधावी हो की वह सी.ऐ,डाक्टर ,वकील, इंजिनियर या वैज्ञानिक बन पाए. आजकल परंपरागत लाइन चुनने के अतिरिक्त भी अनेक प्रकार के नए क्षेत्र खुले है जो शायद आपके बच्चे की रूचि को देखते हुए अधिक उपलब्धि देने वाले साबित हो सकते हैं आवश्यकता है,सही पहुँच और मार्गदर्शन की. उदहारण के तौर पर गायन.अभिनय,संगीतकार,कोरियोग्राफर,टी टेस्टर,अंडर वाटर डाईविंग, पैरा मेडिकल कोर्स इत्यादि.बच्चे की क्षमता से अधिक अपेक्षाएं रखना,या उसकी रुचियों के विरुद्ध उसको किसी लाइन में जाने के लिए दबाव बनाना,उसको विद्रोही ,चिडचिडा या भयाक्रांत कर सकता है.अतः अपने बच्चे की सीमाओं को पहचान कर उसके लक्ष्य को निर्धारित करना चाहिए.उसकी योग्यता का अनुसार उचित दिशा में आगे बढते हुए भी एक अच्छा नागरिक बना जा सकता है और एक सम्माननीय जीवन जिया जा सकता है.उसकी क्षमता को देखते हुए उसको सहयोग देते रहना चाहिए.आपका प्यार और सहयोग उसे विचलित नहीं होने देगा ,उसे हताश नहीं होने देगा,उसे पथभ्रष्ट नहीं होने देगा. और वह अधिक ऊंचाइयों पर न पहुँच कर भी सम्मान और संतुष्टि से जीवन निर्वाह कर सकता है.जो आपके लिए भी सुखदायी होगा.
अपने बच्चे के संरक्षक बनें छत्र छाया नहीं, उसे जीवन संघर्ष करने के लिए प्रेरित करें.छत्र छाया बन कर उसे कमजोर न बनायें...................................................................................................................................
.............एक अभिभावक अपने बच्चे के शिक्षकों से क्या बेहतरीन अपेक्षाएं रख सकता है , लिंकन का एक पत्र इसका शानदार उदाहरण है ....लिंकन अपने बच्चे के शिक्षक को पत्र लिखकर कहते हैं ---------'' मैं जानता हूँ कि इस दुनिया में सारे लोग अच्छे और सच्चे नहीं हैं। यह बात मेरे बेटे को भी सीखना होगी। पर मैं चाहता हूँ कि आप उसे यह बताएँ कि हर बुरे आदमी के पास भी अच्छा हृदय होता है। हर स्वार्थी नेता के अंदर अच्छा लीडर बनने की क्षमता होती है। मैं चाहता हूँ कि आप उसे सिखाएँ कि हर दुश्मन के अंदर एक दोस्त बनने की संभावना भी होती है। ये बातें सीखने में उसे समय लगेगा, मैं जानता हूँ। पर आप उसे सिखाइए कि मेहनत से कमाया गया एक रुपया, सड़क पर मिलने वाले पाँच रुपए के नोट से ज्यादा कीमती होता है। 

आप उसे बताइएगा कि दूसरों से जलन की भावना अपने मन में ना लाएँ। साथ ही यह भी कि खुलकर हँसते हुए भी शालीनता बरतना कितना जरूरी है। मुझे उम्मीद है कि आप उसे बता पाएँगे कि दूसरों को धमकाना और डराना कोई अच्‍छी बात नहीं है। यह काम करने से उसे दूर रहना चाहिए।

आप उसे किताबें पढ़ने के लिए तो कहिएगा ही, पर साथ ही उसे आकाश में उड़ते पक्षियों को धूप, धूप में हरे-भरे मैदानों में खिले-फूलों पर मँडराती तितलियों को निहारने की याद भी दिलाते रहिएगा। मैं समझता हूँ कि ये बातें उसके लिए ज्यादा काम की हैं।

मैं मानता हूँ कि स्कूल के दिनों में ही उसे यह बात भी सीखना होगी कि नकल करके पास होने से फेल होना अच्‍छा है। किसी बात पर चाहे दूसरे उसे गलत कहें, पर अपनी सच्ची बात पर कायम रहने का हुनर उसमें होना चाहिए। दयालु लोगों के साथ नम्रता से पेश आना और बुरे लोगों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए। दूसरों की सारी बातें सुनने के बाद उसमें से काम की चीजों का चुनाव उसे इन्हीं दिनों में सीखना होगा।

आप उसे बताना मत भूलिएगा कि उदासी को किस तरह प्रसन्नता में बदला जा सकता है। और उसे यह भी बताइएगा कि जब कभी रोने का मन करे तो रोने में शर्म बिल्कुल ना करे। मेरा सोचना है कि उसे खुद पर विश्वास होना चाहिए और दूसरों पर भी। तभी तो वह एक अच्छा इंसान बन पाएगा।

ये बातें बड़ी हैं और लंबी भी। पर आप इनमें से जितना भी उसे बता पाएँ उतना उसके लिए अच्छा होगा। फिर अभी मेरा बेटा बहुत छोटा है और बहुत प्यारा भी। ''.......निश्चय ही ऐसी श्रेष्ठ भावनाओं से उपजी आपकी सुचिंतित सोच आपके बच्चों का भविष्य बनाएगी ....आज के बच्चे बहुत होशियार हैं , संवेदनशील भी ...उन्हें बस दिशा देने की जरुरत है ...वे कुछ भी कर सकते हैं ...तभी तो कवि अशोक बाजपेयी आशा से कहते हैं ..............................................................बच्चे 
अंतरिक्ष में 
एक दिन निकलेंगे 
अपनी धुन में, 
और बीनकर ले आयेंगे 
अधखाये फलों और 
रकम-रकम के पत्थरों की तरह 
कुछ तारों को । 

आकाश को पुरानी चांदनी की तरह 
अपने कंधों पर ढोकर 
अपने खेल के लिए 
उठा ले आयेंगे बच्चे 
एक दिन । 

बच्चे एक दिन यमलोक पर धावा बोलेंगे 
और छुड़ा ले आयेंगे 
सब पुरखों को 
वापस पृथ्वी पर,
और फिर आँखें फाड़े 
विस्मय से सुनते रहेंगे 
एक अनन्त कहानी 
सदियों तक । 

बच्चे एक दिन......        शुभाकांक्षी!